समेट रहा क्यों दोनों हाथ पाप भरी यह झूठी मााया।। समेट रहा क्यों दोनों हाथ पाप भरी यह झूठी मााया।।
अब इसे क्या कहें? कालाबाजारी या फिर मर चुकी इंसानियत। अब इसे क्या कहें? कालाबाजारी या फिर मर चुकी इंसानियत।
मानव की जब उभर अनुवांशिकता आती, दिखती हैं पाश्विक युद्ध की विभीषिकाएं। मानव की जब उभर अनुवांशिकता आती, दिखती हैं पाश्विक युद्ध की विभीषिकाएं।
कलकल करती नदिया जो कल जो थी, कभी सूखी तो कभी तट तोड़ है बहती कलकल करती नदिया जो कल जो थी, कभी सूखी तो कभी तट तोड़ है बहती
संस्कार संस्कृति की धन्य धरोहर मां भारती के मूल्यों का राष्ट्र समाज में अलख जगाएं ! संस्कार संस्कृति की धन्य धरोहर मां भारती के मूल्यों का राष्ट्र समाज में अलख ...
देवालय सब शांत पड़े हैं, कोलाहल कम, ऐसा मंजर, भगवान को भी अब भाया है, देवालय सब शांत पड़े हैं, कोलाहल कम, ऐसा मंजर, भगवान को भी अब भाया है,